Seven Years in Tibet : हिंदी समीक्षा
दुनिया की छत जब राजनीति के कारण गिर रही थी
वर्ष 1939 की बात है जब एक जर्मन पर्वतारोही
हेनरिक हेरर (मूलतः ऑस्ट्रिया के) ने तत्कालीन ब्रिटिश भारत के नँगा पर्वत (वर्तमान पाकिस्तान में) की चोटी पर पहुंचने के लिए कोशिश की थी, हालांकि बीच रास्ते में ही उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों ने विश्वयुद्ध शुरू हो जाने का हवाला देकर युद्धबंदी बना लिया था। हेनरिक हेरर और उनका ग्रुप डिटेंशन कैम्प में था तो एक दिन वे किसी तरह भागकर निकल गए।
हेनरिक और उनका एक साथी बचकर निकल गए और तिब्बत में जा पहुँचे। शुरू-शुरू में तिब्बती नागरिकों ने उनको बुरी शक्तियां मानकर बर्तन बजा बजा कर उन्हें बाहर निकालने की कोशिश की (ऐसी तिब्बती परम्परा है)। लेकिन एक दिन वो तिब्बत के गुप्त शहर ल्हासा (दलाई लामा का घर) में पहुँच जाते हैं, वहाँ उनकी खूब सेवा की जाती है और शरणार्थी मानकर उन्हें निवास दिया जाता है, उन्हें बाद में विदेशी खबरों को ट्रांसलेट करने और इंजीनियरिंग कार्य के लिए सवैतनिक नौकरी भी दी जाती है। यह वो वक़्त था जब तिब्बत के 14वें दलाई लामा मात्र 12 वर्ष के थे।
हेनरिक और दलाई लामा अच्छे
दोस्त बनते हैं, दलाई लामा की संसार के प्रति जिज्ञासा की पूर्ति हेनरिक भली भांति करते हैं।
यह फिल्म न केवल तिब्बत केंद्रित है बल्कि इसमें हेनरिक हैरर का किरदार भी बहुत महत्वपूर्ण है। हेनरिक के जीवन के बारे में भी इसमें बहुत सी जानकारी है। हेनरिक का एक साथी पीटर भी उन्ही की तरह बेख़ौफ़ और निडर दिखाया गया है। विश्वयुद्ध के दिनों में पर्वतारोहियों के जीवन का भी अच्छा प्रदर्शन है।
1950 के पूर्व ही चीन तिब्बत पर नियंत्रण की कोशिशें करता है, लेकिन तिब्बत के परम्परावादी नेता उन कोशिशों को कुछ हद तक विफल कर देते हैं।
1950 में जब चीन चंदो (तिब्बती क्षेत्र) पर आक्रमण करता है तो भयवश एक तिब्बती नेता तिब्बत के शस्त्रागार को जला देता है और आतंकित होकर चीन के साथ सन्धि करता है, इस सन्धि के कारण अपनी संस्कृति पर चीनियों की पकड़ बढ़ते देख धीरे धीरे तिब्बती लोग तिब्बत को छोड़कर निकल जाते हैं। तिब्बत पर चीन की क्रूरता बढ़ती रहती है वो आने वाले सालों में लाखों भिक्षुओं और हजारों मठों को तबाह कर देता है।
1959 में तिब्बत के सर्वोच्च धर्मगुरु अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसी CIA की मदद से भारत में आ जाते हैं और तब से अब तक 14वें दलाई लामा भारत में शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं।
जब चीन तिब्बत पर कब्ज़ा कर लेता है तो दलाई लामा से अनुमति लेकर हेनरिक हेरर अपने घर ऑस्ट्रिया पहुँच जाते हैं।
फ़िल्म ‘Seven years in tibet’ इसी पूरी कहानी को समेटे हुए है, जिसमें हेनरिक के जीवनकथा की ओट में तिब्बत की संस्कृति, आदर्श परम्पराओं, कर्मठता, चीन की क्रूरता, ढीठता और दलाई लामा की जिज्ञासा और शांतचित्त का बेहतरीन प्रदर्शन किया गया है।
फ़िल्म इतनी वास्तविक प्रस्तुत होती है कि तबाह होते तिब्बत के दारुण दृश्य बहुत ही हृदय विदारक हैं।
आज भी तिब्बत स्वतंत्रता के अपने स्वप्न से कोसों दूर है, तिब्बती संस्कृति को मानने वाले लोग लगातार कम हो रहे हैं और अगले दलाई लामा के पद ग्रहण करने पर भी संशय है। यह वास्तविकता है। हो सकता है अमेरिकी प्रोडक्शन होने के कारण फ़िल्म चीनियों को अत्यंत क्रूर बता रही हो, लेकिन अगर यहाँ कुछ भी सत्य न होता तो तिब्बती संस्कृति लुप्त होने की कगार पर नहीं होती। तिब्बती संस्कृति को पनपाने की बजाय चीनी कम्युनिस्टों ने इसे तबाह कर दिया। तिब्बतियों के लिए हमारा प्यार हमेशा बना रहेगा और आशा करते हैं कि कोई चमत्कार हो और तिब्बत पुनः एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाए
Film – Seven years in tibet
Lead Actor – Brad Pitt
My review – 8/10
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