हिंदी और अंग्रेजी माध्यम का भेद धरातल पर
वो किसी से बात नहीं करता। क्लास में भी चुपचाप बैठा रहता है हमने कल साथ आने का बोला था, मना कर दिया अजीब इंसान है ना? इवन आई नेवर सीन हिम टॉकिंग् विथ ऐनीवन (मैंने भी उसे कभी किसी के साथ बात करते नहीं देखा)
ऐसी बातें गुरु के बारे में एम. ए. फ़र्स्ट ईयर का सेशन शुरू होने के शरुआती समय में यहाँ वहाँ सुनने को मिल ही जाती थी।
क्लास ख़त्म! कोई अपने दोस्तों के साथ खाना खाने कैंटीन, कोई लाइब्रेरी, कोई बाय बाय -सी यू करके हॉस्टल या घर, तो कोई देश विदेश, इतिहास, राजनीति करता चाय पीने यूनिवर्सिटी बेक गेट की तरफ़।
गुरु को क्लास के बाहर अकेला खड़ा देख हालचाल पूछने, मैंने दूर से ही आवाज़ लगाई। हैलो, गुरु… हाँ.. हाँ इधर! पीछे देखो! किसका इंतजार हो रहा था? प्रिंट आउट निकलवाने चलें क्या? उन रीडिंग्स का जो सर ने आज क्लास में बताई है?
क्या यार ई सब प्रिंट आउट फ्रिंट आऊट नोट्स वॉट्स हमारे समझ तो कछु आता है नहीं! सब साला इंग्लिश में बक बक करता है। तुम कैसे समझ लेते हो ई सब, आज का कछु समझ आया? क्या बोल रहें थे सर? हमरे तो बस पूरी की पूरी क्लास मा दुई घण्टा सुनते सुनते अर्ली कॉलोनियल अमेरिका, अर्ली कॉलोनियल अमेरिका बस इता सा समझ आया कि चल तो कछु अमेरिका के बारे में रहा था इता सा बस सियोर है हम! बाक़ी ना जाने क्या था भगवान जाने सब सर के ऊपर से जा रहा था।
तुम्हें तो समझ आया ही होगा आज क्या पढ़ाया। अच्छा ये बहनजी क्या पटर-पटर कर रही थी इंग्लिश में? ई बहिनजी तो सर से भी तेज़ इंग्लिश बोल रही थी। कैसे बोल लेते है ये लोग इंग्लिश में इतना तेज़ तेज़! औऱ हाँ यार एक बात और सुनो जब तुम ई सब लड़की लोग के साथ हो तो हमें आवाज़ मत दिया करो।
मेरे आवाज़ लगाते ही गुरु जैसे मौके के इंतजार में ही थे, मेरे जैसे ही किसी प्राणी की खोज थी उन्हें बस, बस फूट पड़ना था। मैं बाय-बाय और सामने से सी यू की फॉर्मेलिटी मुश्किल से पूरी हुई होगी कि गुरु ने एक सांस में अपनी व्यथा, समस्या व शिकायत सब बोल दिया। मुझे बोलने ही नहीं दिया। मैं बस सुनता रहा।
अपने सब सवाल एक साथ एक के बाद एक गोले के माफ़िक दाग दिए, अपना नजरिया रख दिया, अपनी समस्याएं रख दी औऱ मुझें यदि अगली बार क़भी भी कैम्पस में कहीं भी चलना है तो उसकी टर्म एंड कंडीशन भी स्पष्ट कर दी( टर्म एंड कंडीशन ये कि जब भी मेरे साथ कोई लड़की हो तो मैं गुरु को आवाज़ ना लगाऊँ) आख़िर दो घण्टे का बोरिंग लेक्चर जिसमें गुरु को मात्र इतना भर समझ आया था कि कुछ ना कुछ तो अमेरिका के बारे में पढ़ाया जा रहा था
सिर्फ़ जिसके बारे में ही वो पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कुछ कह सकते थे तो वो बोरियत भरे दो घंटे व वो बिना बोले बैठे रहना, तो खामोशी का बादल कहीं तो फटना ही था। सो फ़ट गया। बोल दिया गुरु ने सब एक साथ, एक सांस में ,बिना रुके , बिना मुझे सुने, नॉनस्टॉप!

पर वो लोग कितने गलत थे जिनकों लगता था गुरु बोलता नहीं है। उन सबको गुरु ने गलत साबित कर दिया।
गुरु जिस धर्म संकट में था वो मैं जानता था। इसलिए थोड़ा हौसला बढ़ाने की कोशिश करते हुए मैं बोला! देखो गुरु मैं एम ए कर रहा हूँ इस यूनिवर्सिटी से, बी ए भी यहीं से की थी यानि चौथा साल है इस यूनिवर्सिटी में।
बी ए के शरुआती दिन मेरे भी ऐसे ही थे, हम जैसे लोगों को इन समस्याओं का सामना करना ही पड़ता है, तुम तो जानते ही हो की लिखता तो अब भी मैं हिंदी में ही हूँ, इसलिए डरने की बात नहीं है। बहुत से ऐसे प्रोफ़ेसर भी है जो हिंदी में भी समझाते हैं कि बात करने से क्यों डरते हो इंग्लिश मीडियम वाले लोगों से?
उनसे बात करोगे, तब ही तो वो धीरे धीरे तुम्हारे दोस्त बनेंगे, तो वो सहायता भी तो करेंगे ना? और इंग्लिश कौनसी बड़ी बात है मेरे साथ जिन्होंने बीए में एडमिशन लिया था उन में से बहुत से इंग्लिश में भी अपने पेपर लिखने लगें है।
अंत में वही रटा रटाया ज्ञान दे दिया जो सब देते है कि “लेंग्वेज इज नॉट एन इशू ब्रो” भाषा तो ज्ञान प्राप्ति का माध्यम मात्र है, तुम किस भाषा मे सही से अपने आपको एक्सप्रेस कर पाते हो, मायने ये रखता है ना कि ये कि तुमने लिखा अंग्रेजी में है या हिंदी में।
और सुनो गुरु! पता है हमारे जैसे लोग इस माहौल में आकर सबसे बड़ी ग़लती क्या करते है?
गुरु:- क्या ?
अबे यार यही कि हम लोग जब गाँव देहात से ऐसे नए-नए माहौल में आते है, तो अंग्रेजी वालों को एक अलग ही दुनिया का समझते रहते हैं, वो हमें अलग। हम बात तो किसी से करते हैं नहीं, ना ही वो करते है औऱ हम जब बात ही नहीं करेंगें, तो किसी को जानेंगे कैसे? तो होगा यहीं कि हम बनायेंगे “परसेप्शन” हम बनाएंगे “राय”! वो ऐसे- वो वैसे!

मानते है दोनों दो अलग अलग वर्ग से दिखाई देते है अंग्रेजी व हिंदी। दिखाई भी क्या देते है असल में है भी दोनों भिन्न। हिंदी या अंग्रेजी का यह अंतर मात्र भाषा भर का भेद नहीं है। बल्कि एक वर्ग भेद है। स्टेटस सिंबल है जो समाज के दो अलग अलग वर्ग बनाता है।
अब जब मेरे लिखे हुए को आप पढ़ते-पढ़ते यहाँ तक पहुँच ही गए है तो आप यह भी जान ही गए होंगे कि मेरा मानना है भाषाएं ऐतिहासिक रूप से समय औऱ स्थान के अनुसार वर्गों का निर्माण करती आई है और करती रहेगी। परंतु पते की बात यह है कि एक बेहतर समाज के निर्माण में जो यह वर्ग विभेद या भाषाई विभेद बाधा उत्पन्न करता है उसको हम कम कर सकते हैं और उसका तरीका है बात, संवाद( Dialogue), चर्चा व वार्तालाप।
वर्ग विभेद के दो अलग-अलग रूपक जो हमने गुरु व गुरु को विचित्र मानने वालों के रूप में देखें। ये दोनों रूपक संवाद में हमारे समाज के विश्वास नहीं होने को ही तो दर्शाते है, यदि ऐसा नहीं होता तो एक वर्ग विशेष जिसे हमनें अंग्रेजी वर्ग के रूप में परिभाषित किया है।
उसके लिए भला गुरु जैसे लोग अजीब व विचित्र क्यों दिखाई देते, क्यों उन्हें सिर्फ़ यह समस्या ही दिखाई देती की वो अकेला रहता है। इसके विपरीत क्यों वो यह नहीं सोच पाए कि वो अकेला आखिर रहता क्यों है? या फ़िर यह कि उसने उनके साथ आने से मना क्यों कर दिया? वो क्यों उनके साथ सहज महसूस नहीं कर पा रहा था? यानि जहाँ संवाद का अभाव होता है वहाँ समस्या तो दिखाई दे जाती है पर समाधान नहीं।
हम यदि ऐसे समाज का हिस्सा होते जो संवाद में विश्वास करता, तो ऐसे समाज में शायद गुरु को उस लड़की से शिकायत या खुन्नस नहीं होती जिससे पहले वो क़भी मिला ही नहीं था और यहाँ तक की ना ही उसे अंग्रेजी से खुन्नस होती और ना ही उसकी अंग्रेजी में बातचीत गुरु को पटर-पटर लगती, पर हम ऐसे समाज मे रहते है जिसमें उतर भारतीयों के लिए नॉर्थ ईस्ट के लोग अलग हैं।
उनके लिए लिए एक बनी बनाई राय व परसेप्शन हैं। दक्षिण भारतीयों के लिए भी अलग राय व परसेप्शन है और सम्भवतः इसके विपरीत भी है। वो अलग नहीं है ऐसा भी नहीं, अलग होने भी चाहिए। लेकिन उसे हमने विविधता के रूप में नहीं समझा। हमने उस विविधता व एकता को सिर्फ़ किताबों तक सीमित रखा।
यही हिंदी अंग्रेजी के बारे में या ऐसे वर्ग भेद के बारे में है जिसके होने को हम नकार नहीं रहे है पर हम संवाद के अभाव में हमसे जो अलग होता है उसको एक समस्या के रूप में लेते है ,यह नहीं स्वीकार कर पाते है कि वो हमसे भिन्न है। बात बस इतनी सी है। बाक़ी है तो इसी समाज का हिस्सा ना?
(प्रकाशित आलेख में व्यक्त विचार, राय लेखक के निजी हैं। लेखक के विचारों, राय से hemmano.com का कोई सम्बन्ध नहीं है। कोई भी व्याकरण संबंधी त्रुटियां या चूक लेखक की है, hemmano.com इसके लिए किसी तरह से भी जिम्मेदार नहीं है। इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है।)

हिन्दू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास स्नातकोत्तर के छात्र हैं
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भाई साहब बिल्कुल जीवंत उदाहरण दिया है , हमने भी इन समस्याओं को जिया है ।
बिल्कुल सही कहा आपने ❤️🙏