क्या तियानमेन चौक करेगा चीन में तख्तापलट?
कहते हैं कि महान शक्ति के साथ महान जिम्मेदारी आती है, चीन भी एक विश्व महाशक्ति है।
1 अक्टूबर 1949 को जब चीन में साम्यवादी सरकार ने चीन को स्वतंत्र गणराज्य स्थापित कर दिया था तो चीन के इस साम्यवादी लोकतंत्र से संसार के विभिन्न देशों और दूसरी विचारधाराओं को बहुत उम्मीद थी। चीन ने अपने ऊपर लगा अर्द्ध-सामंती और अर्द्ध-उपनिवेश का तमगा हटाने की कोशिश की लेकिन वो इसमें पूरी तरह सफल नहीं हो सका।

आज चीन जनसँख्या के मामले में पहले पायदान पर आता है, इतनी विशाल जनसंख्या को नियंत्रित करने और उसके साथ ही लगातार विकास की राह पर बढ़ने की कोशिश चीन की रही है। चीन पूरे संसार में अपनी उत्पादक शक्ति के लिए जाना जाता है। हर प्रकार के व्यापारिक क्षेत्र में चीन अधिकांश देशों से अग्रणी है।
लेकिन चीन आज भी अपनी क्रूरता और दमनकारी नीतियों के चलते लोकतान्त्रिक विचारधारा के निशाने पर है और उसे सामन्तवादी देश से कम नहीं आँका जा रहा है। इसकी एक झलक ट्विटर पर लगातार चीन के खिलाफ होने वाली प्रतिक्रियाओं से भी देखी जा सकती है।
तियानमेन चौक है चीन की राजनीति का अखाड़ा –
1989 में चीन में लोकतंत्र बहाली को लेकर एक आन्दोलन हुआ था, छात्राधिक्य इस आन्दोलन का कारण था चीन की सरकार का तानाशाही बनने की ओर झुकाव। चीन की सरकार आम नागरिकों के प्रति तानाशाही रुख तो अपना ही रही थी साथ ही साथ देश में महंगाई, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन भी बड़े दायरे पर होने लगा था।

चीन के जागरूक लोगों ने बीजिंग शहर के तियानमेन चौक में 1989 में विरोध आयोजित किया था जिसमें अधिकाँश छात्र ही थे। लाखों की संख्या में इकट्ठे हुए लोग देश में लोकतान्त्रिक पद्धति और सामान्य नागरिकों के अधिकारों की बहाली की मांग कर रहे थे। चीनी सरकार ने बड़ी ही क्रूरता से 4 जून 1989 को अपने ही देश के नागरिकों को चुप करवाने के लिए मार्शल लॉ लगवा दिया था और प्रदर्शनकारियों को टैंक व सेना भेजकर भुनवा दिया था।
चीन ने इस हत्याकांड के बाद केवल 300 मौतों का आंकड़ा जारी किया था लेकिन असल आंकड़ा कुछ और था। आन्तरिक रूप से लीक हुए इन आंकड़ों के अनुसार करीब 10 हजार लोग मरे थे, इस हत्याकांड को लेकर चीन की जनता में हमेशा से रोष रहा है और बढती निरंकुशता को लेकर लगातार चिंता उसी गति से बढ़ती जा रही है।
तियानमेन चौक और आज का चीन
4 जून 2020 में भी यह मुद्दा सोशल साइट्स पर छाया रहा, कई चीनी लोग जो दूसरे देशों में रहते है ने इस मुद्दे को ट्विटर पर ट्रेंड करवा दिया और दुनियाभर का ध्यान चीन की निरंकुशता के इतिहास की ओर कर दिया।
चूँकि चीन में सोशल वेबसाइट बैन है तो चीन के लोकल लोग इसमें शामिल नहीं हो सके लेकिन इस बात की बहुत संभावना है कि वैश्विक परिदृश्य में चीन आज जहाँ खड़ा है और जिस प्रकार देश के भीतर व्यापारिक विकास का हनन और अलोकतांत्रिक गतिविधियाँ बढ़ रहीं है चीन की जनता किसी ज्वालामुखी के विस्फोट की भांति फूट पड़ेगी।
हांगकांग में आज तियानमेन चौक की उस घटना की याद में इकट्ठे हुए लोग चीन की कम्युनिस्ट सरकार के लिए अशुभ का संकेत है-
In the shadow of #NationalSecurityLaw, thousands of #Hongkongers broke barricades and started to assemble in Victoria Park to mourn #TiananmenSquareMassacre. pic.twitter.com/y6mtGCs689
— Demosistō 香港眾志 😷 (@demosisto) June 4, 2020
तियानमेन चौक आज भी चीन के लोगों की रूह से जुदा मुद्दा है, सरकार की क्रूरता की निशानी है। आज भी चीन के लोग तियानमेन चौक पर बहे खून को अपनी आँखों में समेटे हुए एक अच्छे मौके की तलाश में है। चीनी लोग हर साल इस तियानमेन चौक घटना की बरसी पर यहाँ आकर श्रद्धांजलि देते हैं। इसकी 31वीं बरसी ने उन्हीं चीनी नागरिकों को फिर से एक अवसर दिया है कि वे इस घटना की बरसी से फिर एक बार किसी आंदोलन को जन्म दें। जब चीन की साम्यवादी पार्टी की सरकार कोरोना, हांगकांग, विश्व स्तर पर व्यापारिक संधियों का विरोध झेल रही है

चीन की सरकार बौखला गयी है, अपनी सैन्य क्षमता के अतिरिक्त उसके पास बहुत कम ऐसे उपाय हैं जिनसे वो जनता को काबू में कर सके। चीन की जनता इस प्रकार की साम्यवादिता से ऊब चुकी है। चीन 2020 में एक बड़ा परिवर्तन अपने भीतर देख सकता है। सिद्ध और आजमाए हुए लोकतंत्र को वहां के बुद्धिमान लोग तवज्जो दे सकते हैं।
चीनी सरकारी हांगकांग को खोती नज़र आ रही है और पडौसी देशों के खिलाफ बौखलाहट में अपनी सैन्य कार्यवाही बढ़ा रही है। विश्व के बहुत से देश चीन की नीतियों का खुलेआम विरोध कर रहे हैं। अमेरिका जैसा देश चीन में बढ़ती राजनीतिक हलचल को पैनी निगाहों से देख रहा है।
सोनम वांगचुक (भारतीय शिक्षाविद्) का कहना कि चीन में तख्तापलट भी देखा जा सकता है अब अतिशयोक्ति नहीं लगता।