अच्छी फ़िल्में अच्छी किताबों पर भारी होती हैं, लेकिन विश्व फिल्म इतिहास में ऐसी फिल्मों की संख्या कम है।
12 Angry Men : हिंदी समीक्षा:
दुनियाभर में तमाम तरह की फिल्में बनती हैं, अलग अलग जगहों पर जाकर शूटिंग, गानों-गाड़ियों यहाँ तक कि हवाईजहाज और हेलीकॉप्टर उपयोग लेने से भी नहीं चूकते। हॉलीवुड फिल्में बजट के मामले में सबसे महंगी फिल्में होती हैं।
कम बजट की फिल्मों को लोग ज्यादा देखना पसंद नहीं करते, लोग एक्शन, थ्रिलर फिल्मों पर अपना ध्यान ज्यादा ही फोकस करते हैं।
अगर आप 1957 की बात करें तो कहेंगे कि ऐसी किसी फिल्म का वर्तमान में कोई औचित्य नहीं, इनसे बेहतरीन फिल्में अब बनने लगी हैं, तब कलर मूवीज नहीं बनती थी।
1957 में आई ऐसी ही एक फ़िल्म ‘
12 Angry Men‘ अब तक की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक है। यह एक
लीगल ड्रामा फ़िल्म है, कानून पर आधारित है, शिक्षा पर आधारित है, आशा पर आधारित है।
12 लोगों की एक ज्यूरी के समक्ष एक 18 वर्षीय लड़के को दोषी व निर्दोष साबित करने को लेकर प्रश्न खड़े हैं, सारे लोग एक ही कमरे में बैठे हैं।
वोटिंग होती हैं, कुछ लोगों को घर जाने की जल्दी है, कुछ लोगों को बेसबॉल मैच देखना है और इसी कारण वे लड़के को दोषी करार देते हैं, देखादेखी 11 ज्यूरी मेम्बर उसे दोषी करार दे देते हैं। लेकिन केवल एक मेम्बर मानता है कि वो निर्दोष है या एक बार पुनः उसे थोड़ा टाइम देना चाहिए।
अब फ़िल्म इसी पर आधारित है कि किस तरह वह अकेला अपने विपक्ष में खड़े 11 लोगों को अपनी तरफ कर लेता है। सबको उस एक ज़िंदगी का महत्व बताते हुए उस लड़के के केस पर दोबारा ध्यान देने के लिए कहता है, वह यह नहीं मानता कि लड़का पूरी तरह निर्दोष है परंतु वह यह भी नहीं मानता कि लड़का पूरी तरह दोषी भी है।
इन 12 लोगों में से कुछ लोग कुंठित भी होते हैं जो अपनी कुंठाओं को लगातार किसी न किसी तरीके से निकालते हैं।
एक ही कमरे में बनी इस फ़िल्म का बजट 2 करोड़ रुपये से भी ऊपर था, परन्तु अदाकारी और लॉन्ग टर्म सीन भी बहुत हैं जिनमें बार-बार कट कहने की जरूरत नहीं पड़ती।
कानून के
विद्यार्थी, वाद-विवाद में रुचि रखने वालों को इस फ़िल्म को घोटकर पी लेना चाहिए कि सत्य कभी छिप नहीं सकता वो अणु की भांति हर जगह सम्मिलित रहता है आवश्यकता होती है तो केवल पैनी नज़र की।